
✨ भूमिका: दिवाली के आरम्भ का पहला दीप – धनतेरस ✨
धनतेरस यानी “धन” और “तेरस” का संगम — कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि, जो दीपावली के पाँच दिवसीय उत्सव की शुरुआत करती है। यह दिन केवल सोना-चाँदी खरीदने का प्रतीक नहीं, बल्कि आरोग्य, आयु, समृद्धि और शुभता का उत्सव है।
भारत की प्राचीन परम्पराओं में हर पर्व के पीछे कोई गूढ़ अर्थ छिपा है। धनतेरस हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन का सबसे बड़ा धन केवल वैभव नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और संतुलित चेतना है।
🔥 धनतेरस की पौराणिक कथा – समुद्र मंथन और धन्वंतरि अवतार 🔥
प्राचीन काल में जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ, तब समुद्र से चौदह रत्न निकले। इन्हीं रत्नों में से एक थे भगवान धन्वंतरि — भगवान विष्णु के अवतार, जो अमृत कलश लेकर प्रकट हुए।
वे देव वैद्य कहे गए — अर्थात् देवताओं के चिकित्सक। उन्होंने आयुर्वेद का ज्ञान मानवता को प्रदान किया ताकि हर जीव आरोग्यवान और दीर्घायु रहे। यही कारण है कि धनतेरस के दिन हम आरोग्य देव धन्वंतरि की पूजा करते हैं।
जब वे अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, उसी क्षण से यह तिथि धन और स्वास्थ्य की प्रतीक बन गई। इसीलिए कहा जाता है —
"जहाँ धन्वंतरि की पूजा होती है, वहाँ रोग और दुर्भाग्य का नाश होता है।"
💎 क्यों खरीदा जाता है सोना-चाँदी इस दिन? 💎
पुरातन मान्यता है कि धनतेरस के दिन कुछ शुभ वस्तु खरीदना माँ लक्ष्मी को आमंत्रित करने के समान है।
सोना और चाँदी स्थायी धन के प्रतीक हैं — यह सिर्फ़ धातु नहीं, बल्कि समृद्धि की ऊर्जा है।
इस दिन खरीदा गया धन जीवन में स्थायित्व, वृद्धि और शुभता लाता है।
परंतु गुरुजी सुनील चौधरी (Suniltams) के शब्दों में —
“सच्चा धन वह नहीं जो तिजोरी में बंद हो जाए, सच्चा धन वह है जो ज्ञान, सेवा और कर्म के रूप में प्रवाहित हो।”
इसलिए इस दिन हम केवल वस्तुएँ ही न खरीदें, बल्कि अपने भीतर सकारात्मक विचार, नई प्रेरणा और सद्कर्म की संकल्पना भी खरीदें।
🌿 धनतेरस का आध्यात्मिक अर्थ – शरीर और आत्मा का संतुलन 🌿
भगवान धन्वंतरि का जन्म हमें याद दिलाता है कि शरीर हमारा मंदिर है।
अगर शरीर रोगी है तो कोई भी वैभव सुख नहीं दे सकता।
इसलिए इस दिन आरोग्य की साधना ही सच्ची पूजा है।
🙏 प्रातः स्नान के बाद ताम्बे या चाँदी के पात्र में जल लेकर भगवान धन्वंतरि का आवाहन करें:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशनाय स्वाहा।”
फिर दीप जलाकर यह संकल्प करें —
“मैं अपने शरीर को स्वस्थ, मन को शांत और कर्म को समर्पित रखूँगा।”
यही आध्यात्मिक ताण्डव है — जहाँ मन, बुद्धि और आत्मा एक लय में नृत्य करते हैं।
🌕 लक्ष्मी पूजन का आरम्भ – द्वार पर दीप और हृदय में प्रकाश 🌕
धनतेरस के दिन पहला दीपक यमराज के नाम जलाया जाता है, ताकि अकाल मृत्यु का भय दूर हो।
यह दीप जीवन की क्षणभंगुरता की याद दिलाता है —
कि मृत्यु निश्चित है, परन्तु कर्म और स्मृति अमर हैं।
जब द्वार पर दीपक जलता है तो उसका प्रकाश केवल बाहर नहीं, भीतर भी फैलता है।
गुरुजी कहते हैं —
“प्रकाश केवल तेल और बत्ती से नहीं जलता, वह तब जलता है जब मन का अंधकार मिटता है।”
इसलिए इस दिन अपने भीतर के अंधकार — यानी भय, आलस्य, क्रोध और लोभ को निकालकर, सत्य, श्रम, प्रेम और विश्वास का दीप जलाएँ।
🕉️ ताण्डव कोच गुरुजी सुनील चौधरी के विशेष विचार 🕉️
“धनतेरस हमें याद दिलाता है कि जीवन में धनवान बनने से पहले धर्मवान बनना ज़रूरी है।
धन आएगा, जाएगा — पर संस्कार और चेतना सदा साथ रहेंगी।
अगर मन में ईश्वर का दीप जल गया तो हर दिन धनतेरस है।”
गुरुजी के अनुसार Digital Yug में भी धनतेरस की भावना वही है —
ज्ञान ही नया सोना है।
कौशल ही असली चाँदी है।
आस्था ही अमृत कलश है।
जब कोई व्यक्ति अपने ज्ञान से, अपने कर्म से, और अपने विचारों से दूसरों का कल्याण करता है,
वह भी भगवान धन्वंतरि का एक डिजिटल अवतार है।
💫 धनतेरस पर क्या करें और क्या न करें 💫
करें:
प्रातः स्नान के बाद आरोग्य और समृद्धि की प्रार्थना करें।
ताम्बे या चाँदी के बर्तन खरीदें।
दीपदान करें — विशेषकर दरिद्र नारायण के घर।
किसी रोगी को औषध या सहायता दें — यही धन्वंतरि सेवा है।
परिवार के साथ लक्ष्मी-धन्वंतरि पूजन करें।
न करें:
झगड़ा या कटु वचन से दिन की शुरुआत न करें।
उधार या उधारी के लेनदेन से बचें।
मन में अहंकार न आने दें कि “मेरे पास धन है।”
अपने कर्म को हल्का न करें — यही सच्चा दोष है।
🌸 धनतेरस पर गुरुजी की शुभकामनाएँ 🌸
🌼 “आपका जीवन धन्वंतरि के कलश जितना पवित्र और अमृतमय हो।
आपके घर में लक्ष्मी का वास हो,
आपके कर्म में धर्म की ज्योति हो,
आपके परिवार में प्रेम का दीपक सदा जलता रहे।
आपके भीतर का भय मिटे, और विश्वास का सूर्य उदय हो।” 🌼
याद रखें —
धनतेरस केवल धन अर्जन का पर्व नहीं,
यह ध्यान और तन-मन की समृद्धि का पर्व है।
🌺 समापन संदेश – गुरुजी का ताण्डव वचन 🌺
“जिस दिन मनुष्य यह समझ लेता है कि वह स्वयं अमृत का पात्र है,
उस दिन उसके जीवन का हर क्षण धनतेरस बन जाता है।”
गुरुजी सुनील चौधरी (Suniltams) की ओर से
आप सभी को आरोग्य, आनंद और समृद्धि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जय सनातन! वन्दे मातरम्!
— ताण्डव कोच, गुरुजी सुनील चौधरी (Suniltams)
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